गुरुवार, २९ मे, २०१४

मी उगाच भटकत होतो

मी उगाच भटकत होतो
वाळूच्या शांत समुद्री
मौनाला बिलगून गेली
मौनाची नाजूक गाणी

अवकाश मोकळे झाले
अंतरात गुदमरलेले
दु:खाच्या पाऊलखुणांनी
गालावर ओघळलेले

नभी चंद्र जरासा तुटका
वाऱ्याने हालत नाही
शपथांच्या स्मरणधुळीने
आभाळ कोंदूनी जाई

हे असेच काहीबाही
फुलणाऱ्या झाडाजैसे
गळणाऱ्या पानांनाही
का टोचत असतील काटे?

गाण्याचे दु:ख सुकोमल
दु:खाचे गाणे भोळे

सोमवार, २६ मे, २०१४

निळ्या डोहातून येते

निळ्या डोहातून येते
निळी जांभळी पहाट
निळ्या वाटेवर घेते
निळाईचा अदमास

निळ्या मनाने सांगते
निळ्या स्वप्नाची कहाणी
निळ्या ओवीत गुंफते
निळ्या डोहाची भूपाळी

निळ्या परसात फुले
निळ्या दवाने नाहली
निळ्या सूर्यकिरणांनी
निळी माया पांघरली

निळी जादू जगण्याची
निळी भूल मरणाची
निळ्या कंठातून येते
निळी शिळ पाखराची

निळे जग, निळे नभ
निळे तन, निळे मन
निळे सर्व चराचर
निळे सारे गहिवर

- श्रीपाद कोठे
नागपूर
सोमवार, २६ मे २०१४

शुक्रवार, १६ मे, २०१४

मै देख रहा हूँ इतिहास को

मै देख रहा हूँ इतिहास को
करवट बदलते हुए…
महलों में सजनेवाला ताज
चाय की प्याली भरनेवाले
और धोनेवाले हाथों पर
अधिक तेजस्वी और प्रखर
होते हुए,
वर्षों के अपमानों और अपशब्दों को
फूलों के हार होते हुए
इतिहास रचने का आनंद
शम्पेन की बोतल की बजाय
बूढी थरथराती माँ के हाथों में खोजते हुए
मै देख रहा हूँ इतिहास को
करवट बदलते हुए...

मै देख रहा हूँ इतिहास को-
प्लास्टिक की मामूली कुर्सी पर बैठे हुए
मिट्टी की भीनी भीनी खुशबु बिखेरते हुए
मांगने और देने के धरातल से ऊपर
मृत्यु का वरण करते होठों से
देश के विकास के लिए
आशीर्वाद देते हुए
मै देख रहा हूँ इतिहास को
करवट बदलते हुए…

मै देख रहा हूँ इतिहास को-
भटकी हुयी विद्वत्ता को
सहेजते हुए
विडम्बनाओं को दूर कर
सार्थकता खोजते हुए
खुद को ही नकारनेवाले मनोरोग को
पुरुषार्थ में परिवर्तित करते हुए
लाखों आहुतियों से संतुष्ट होकर
राष्ट्रयज्ञ की पूर्णाहुति करते हुए
आशाओं और निराशाओं पर
हिलोरे खाते हुए भी
आशाओं के मधुगीत गाते हुए
मै देख रहा हूँ इतिहास को
करवट बदलते हुए…

मै देख रहा हूँ इतिहास को-
उन्नत फिर भी नतमस्तक
चिरप्रतीक्षित फिर भी आश्चर्यजनक
सदियों की नींद से जागते हुए
अंगड़ाई लेते हुए
गहरी नींद में देखे सपनों की
मुस्कुराहट लबों पर बिखेरते हुए
उन सपनों को सत्य का जामा
पहनाने का संकल्प करते हुए
असहायता त्याग कर खड़ा होते हुए
मै देख रहा हूँ इतिहास को
करवट बदलते हुए…

मै देख रहा हूँ इतिहास को
भगवा चोला पहने, नि:संकोच
फकीर बन भटकते हुए
अपनी ही धुन में मस्त
माता के वैभवगीत गाते हुए
पाताल में धरदबोचने के लिए उठे
सारी शक्तियों को परास्त करते हुए
हवाओं का रुख बदलते हुए
फिर नया इतिहास रचने को सिद्ध
मै देख रहा हूँ इतिहास को
करवट बदलते हुए…

- श्रीपाद कोठे
नागपूर
शुक्रवार, १६ मई २०१४

गुरुवार, १ मे, २०१४

आतुर

आतुर नयनांनी
आतबाहेर करणारी
अडखळती पावले
अदमास घेतात
आडवाटेने येणाऱ्या वाऱ्याचा
अस्पष्ट आवाजाचा
आश्वासक ताऱ्याचा,
आचमनपळी घालतात
आडोशाच्या दाराला
आतल्याआत समजावतात
अधीरल्या प्राणांना,
अभिषेक करतात
आराध्याचा अश्रूंनी
आजही अन उद्याही

- श्रीपाद कोठे
नागपूर
गुरुवार, १ मे २०१४